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S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)

Others

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S R Daemrot (उल्लास भरतपुरी)

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व्यंग्य : जीने का ढंग यह भी।

व्यंग्य : जीने का ढंग यह भी।

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अच्छे कहलाना चाहते हो, लोगों के चलो इशारों पर।  

इतिहास यदि बनना चाहो, मिट जाओ गैरों के नारों पर।।


यदि वाह वाही की इच्छा है, नीचे बनकर जीना सीखो।  

बुद्धू बन जाओ इस जग में , तुम स्वार्थ में जीना सीखो।।

 

हृदय में अग्नि प्रचंड सही , होठों से मुस्कुराना सीखो।  

हीन से हीन आदमी को, मौके पर झुक जाना सीखो।।


 दोनों तरफ की बातें करने में , माहिर हो जाओ जी।   

जो पक्ष लगे भारी-भरकम ,उसमें शामिल हो जाओ जी।।


 व्यर्थ की दुनियादारी में, तुम बुद्धि अगर लगाओगे ।  

यह घिस जाएगी तो बोलो , वापिस क्या जमा कराओगे।।

 

कलयुग में द्रोणाचार्य बहुत से , मिल जाएंगे दुनिया में।  

पाकर तुम जैसा एकलव्य , वो खिल जाएंगे दुनिया में। 

 

तुम भोले भाले चेहरों से, लोगों को विस्मित कर दो।

मानव सामाजिक पशु ही है, "उल्लास" ये सत्यापित कर दो।।

                     


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