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Sudesh Gautam

Others

3  

Sudesh Gautam

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वो

वो

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 वो पर्वत सिखर से, 

  सरकती हुई,कुछ मटकती हुई,

 मदमदाती,कुछ उफनती हुई,

  कुम्भ उभार लिए,डूबती हुई ,

  उभरती हुई, मचलती हुई ।।1।।

  

   बलखाती,नहलाती, रस से सराबोर ,

  ,बरसाती ,सरसराती, टेड़ी -मेड़ी राहों से,

   नाचती-गाती ,ब्रम्हानन्द में मुग्ध मग्न,

  उत्तर आती हैधरा पर शालीन होती हुई।।2।।


  "चल देती है" 

 "मिलने के लिए" ,शान्त ,

  "चुपचाप"

   "भीतर बड़ा उफान भर कर",

   " नहीं करती बात किसी से "

     "न ही दिखाती"

    अपने" घाव-जख़्म""   

   "वस चलना जानती है"

      "अपने पथ पर" ।।3।।

   

   "मुदित,मस्त, चुस्त,"

    "तंदरुस्त,दुरूस्त" ,

  " रुदन नहीं सुना कभी उसका,"

   "अपने मधुर स्वर""

    "शब्द अनहद से",

    "प्रमुदित कर देती"

      "सकल चराचर का मन"

    " संगीत उभरता"

   " निकलता रहता"

       "पल-पल"

       "क्षण-क्षण"।।4।।

  देख रह था,

  " इक लम्बे समय से"

   "आज पूछने का सहास कर हि लिया "

    "वो बोली,"

    "कानों में मिश्री घोली"

    चिर- परिचित "हसी-ठिठोली"।।5।।

    

    पास जा बैठता,

हर शाम की लालिमा से कुछ पहले,

 भर लेती वो अपने आगोश में,

 मस्त ,मदहोश, खामोश कर देती,

 बांध लेती शीतल सुखद स्नेह पाश में,

 कानों में कुछ मधुर गुनगुनाती,

 अपना सन्देशा सुनाती,

 कितनी अच्छी ,कितनी सच्ची है वो,

 मेरी मीत पक्की है वो ।।6।।


 कुछ इठलाती, कुछ शर्माती

 उफनता रस उडेलती सी ,

  कभी हंसती ,कभी खेलती सी,

  जितनी भोली, उतनी चञ्चल,

  रस -रूप से भरी हुई,

     मेरे मन में मन्दिर खड़ी हुई,

     रस -रूप -शब्द से लदी हुई।।7।।


  सबको आनन्दित करती हूँ  "

अपनी राह पर चलती हूँ,

     "पीछे मुड़कर नहीं देखती हूँ""

      ""नहीं किसी से लड़ती हूँ""

        "नहीं किसी से डरती हूँ"।।8।।

       

    "निज प्रियतम की प्रेम प्यासी"

     "जन्म जन्म की में हूँ दासी "

     "वो मेघ रूप "वर" धर मेरे घर आता "

   मैं "नदीया"सी दुल्हन सज उसके घर जाती"

   "जन्मों- जन्मान्तरों से सम्बन्ध हमारा"

  मैं सरिता वो समुद्र हमारा"।।9।।


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