वो अप्सरा
वो अप्सरा
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स्याह रात में बरसात से डरी सहमी सी,
ओट सर पे वो दुपट्टे की किये बैठी थी।
कड़कती बिजलियां, कुछ और डरा देती थी,
कानों को अपने दोनों हाथों से दबा लेती थी।
तन्हा अनजाने से डर से वो सहम जाती थी,
किसी उम्मीद में नजरें यूँ ही दौड़ाती थी।
दिल ने चाहा मुश्किल उसकी मै आसान करूँ,
“आरजू ए दीदार” में रफ्तार मेरी थम जाती थी।
जुल्फों पर ठहरे हुए मोती भी बेईमान हुए,
गुलाबी चेहरा वो छू लेने को परेशान हुए।
नर्म गालों से सरक कर सुर्ख लबों तक पहुँचे,
ख्वाहिशें और बढ़ाने को तैयार वो नादान हुए।
भीगते जिस्म को दुपट्टे से बचा लेने की,
कोशिशें उसकी सब ज़ाया ही हुई जाती थी।
तेज रफ्तार से गिरती हुई बूंदें उसको,
सर से पांव तक भिगाते हुए निकल जाती थी।
नजरें मुझ पर अचानक उसकी आकर ठहरीं,
एक मासूम गुज़ारिश थी आंखो में गहरी।
मिला एहसास मेरी नजरों से के महफूज़ है वो,
लबों पर खिल उठी थी उसके मुस्कान सुनहरी।