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विदेश नीति

विदेश नीति

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सत्ता मेरे हाथों में है,

शतरंज के हम पुराने खिलाड़ी है।

आप मुझे सिखायेंगे 

कि खेला कैसे जाता है?

आप हमारे वादों 

में उलझते चले जाय।

हम तो अपनी चाल 

चलते रहेंगे।

अब कर लो जो भी 

करना है।

मंदिर तो हम बना के रहेंगे।

कौन हमें सिखाएगा?

कौन हमें बताएगा?

किस देशों को अपनायें 

किसे दर्पण दिखाएँ?

इजराइल, ईरान और सीरिया में 

भले नरसंहार ही

क्यों ना हो।

हमें क्या? हमने तो

पंचशील गुटनिरपेक्ष

को ताक पर रख दिया है।

रूस से तो हमें

बहुत कुछ सीखना है।

क्रेमिया उक्रेन का उत्पीडन मंत्र

हमें कण्ठस्थ याद करना है।

हमने तो पाकिस्तानियों को

पिछले साल जमके

दहाड़ा था।

अब की बात कुछ और है।

हम आभारी है

अमेरिका का जिसने

सिखाया विदेश नीति।

विदेशों से ही बनती है।

तभी तो सत्ता

की बात संवरती है !!


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