उन यादों का क्या
उन यादों का क्या
उन यादों का क्या, जो बार बार तड़पाये,
कभी सपनों में आए, मन को खूब सताये,
वो यादें अमर बन गई, जो दिल जाती हैं,
कभी-कभी ये यादें, भूला राह दिखाती हैं।
यादों के सहारे तो, कट जाती है जिंदगी,
यादों के चलते कभी, बन जाती है बंदगी,
बीती यादों में खोकर, मन कभी हँसता है,
यादों का साया कभी, नाग सम डसता है।
यादें बचपन की आएं, खेलते थे गली गली,
चेहरे से मासूम होते, जैसे बागों की कली,
दिनभर हँसते रहते, रात को करते थे आराम,
पूरा दिन तितली सम उड़े, नहीं कभी काम।
क्या गजब जवानी होती, चेहरा था सजीला,
गलियों से जब चलते थे, कहते छोरा रंगीला,
बीत गयी वो जवानी, अब यादें बस बाकी हैं,
बुढ़ापा बैरी पेट दर्द रहे, लेते हरदम फांकी हैं।
चले गये सारे साथी, एक दिन छोड़ के जाना,
यादें सारी आती पल पल, छूट गया है खाना,
डाल पर बैठा पंछी हूं, न जाने कब उड़ जाऊं,
यादें बनकर रह जाएंगी, मैं तो बस प्रभु पाऊं।
मात पिता भी छोड़ गये, पत्नी भी परलोक गई,
जिंदगी कितनी सुंदर थी, अब वो नासूर भई,
गुरुजन अब याद आते, देते थे हमको शिक्षा,
दाता उनको वापस कर दे, मांगता हूं ये भिक्षा।
यादों के सहारे कट गई, शेष भी कट जाएगी,
यादें दिल पर वार करे, कुछ ओर कर जाएंगी,
एक दिन हम भी याद बनेंगे, मच जाएगा शोर,
चला गया वो इंसान था, रोएंगे वन में भी मोर।
उन वादों का क्या, जो बन जाती है अफसाना,
यादों को क्या दोष दे, इनका काम है सताना,
यादों को अब कह देंगे, अब इधर नहीं आना,
बहुत रो चुके यादों में, अब ना हमको रुलाना।।
