उम्र में फ़र्क
उम्र में फ़र्क
मां की गोद में बचपन खेला
बाप के कंधे से दुनिया को देखा
जिनकी उंगली थाम कर चलना सीख
भोला मान भूलों को किया अनदेखा।
जिसने लफ़्ज़ों का ज्ञान कराया
उस गुरु से बच्चा बतयाया
सब तो तुम्हारा देखा भाला
बहुत नाज़ो से तुमने पाला।
खिलते फूलों के रंग बताए
खिली कलियों के गीत सुनाए
सरगम के सुर में ढाल
लोरी के संगीत सुनाए।
वही युवा ख़ुद को समझ सयाना
ज़िन्दगी के तजुर्बों में परखे ज़माना
लौटकर ममतामयी बाहों में
स्नेही पल्लू ओढ़ने का ढूंढे बहाना।
यह छाया तेरे आंचल की
बड़ी सुखद बड़ी भली
मुझे इसी में लिपटे रहने दो
चाह इसी में पलने बढ़ने की।
अभी तो बच्चा जान न पाए
ममता को पहचान न पाए
उम्र में फ़र्क तो बना रहेगा
ममतामयी छांव में फ़र्क न पाए।