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Dr Baman Chandra Dixit

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Dr Baman Chandra Dixit

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तुम बिन २)

तुम बिन २)

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तुम बिन भाए ना शाम,सांवरे

तुम बिन भाए ना रैन।

क्यों छोड़ गये ब्रज धाम, सांवरे

तरसे दरश को नैन।।


देखूं जिधर भी तुम ही तुम हो

आंखें मूंद लूँ फिर भी तुम हो

नींदों में जागरण में हमरी

बिराजे मन मोहन , साँवरे

तरसे दरश को नैन।।

 

बरज बाट की धूल की कण में

यमुना तट निकट प्रांगण में

नीप पुष्प की लोम लोम राजे

तोर रूप घनश्याम , साँवरे

तरसे दरश को नैन।।


गए ना कुंजे कुहूके कोयलिया

सुबकत शुक रोवत पपीहा

नाचत नाहिँ मोर पंख उठाई के

देख गगन मेघाछन्न, साँवरे

तरसे दरश को को नैन।।


चलत नाहीं मन्द मन्द मरुत

कभो शांत कभो प्रलय बहुत

रोवत कुंजे कुंजे बीथिका लतिका

आहत राग करुण, साँवरे

तरसे दरश को नैन।।


चरत नाहीं गाव घास घन कोमल

दौड़त भागत इधर से उधर

ताकत उसी छोर नैन उठाई के

जिस ओर गये थे श्याम, साँवरे

तरसे दरश को नैन।।


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