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Gulab Jain

Others

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टूटते सपने

टूटते सपने

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मेरी आँखों में हुए दफ़न कितने सपने।

जब हुए दूर मुझसे सब मेरे अपने।

मैंने तो चाहा फ़क़त तसव्वुर में उन्हें,

न जाने कैसे ये अफ़साने लगे छपने। 

जो भी सच्चा है बशर इस भरी दुनिया में,

उसको हमेशा फटे-हाल देखा सबने।

वादा करते थे जो हर दम साथ देने का,

आया तूफ़ान तो सब चल दिए घर अपने।

सांस का क्या है, आज है, कल नहीं,

क्यों सजा रखे हैं फिर इतने सपने।


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