टुकड़ों में ढलता वसंत
टुकड़ों में ढलता वसंत
1 min
319
हाथों में हाथ दिए चलते चलते
अचक अचानक
किसी मोड़ पर
थम सा जाता है समय
देह की सीमा से परे
स्पंदित मन
सांसों में पलता है वसंत
सपनों का सेहरा बांधे
आशा की डोली हिचकोले खाती
हर मोड़ पर
साथ निभाता है समय
बंधते जाते रिश्तों के
रेशमी बंधन
प्राणों में घुलता है वसंत
अनजाने ही बेगाने से होते जाते
रिश्तों की डोर थामने
एक बार फ़िर
थम सा जाता है समय
देह की सीमा से परे
खंडित मन
टुकड़ों में ढलता है वसंत।
