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Dr. Anu Somayajula

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Dr. Anu Somayajula

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टुकड़ों में ढलता वसंत

टुकड़ों में ढलता वसंत

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हाथों में हाथ दिए चलते चलते

अचक अचानक

किसी मोड़ पर

थम सा जाता है समय

देह की सीमा से परे

स्पंदित मन

सांसों में पलता है वसंत


सपनों का सेहरा बांधे 

आशा की डोली हिचकोले खाती

हर मोड़ पर 

साथ निभाता है समय

बंधते जाते रिश्तों के 

रेशमी बंधन

प्राणों में घुलता है वसंत


अनजाने ही बेगाने से होते जाते

रिश्तों की डोर थामने

एक बार फ़िर

थम सा जाता है समय

देह की सीमा से परे

खंडित मन

टुकड़ों में ढलता है वसंत।


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