टेलीफोन..!
टेलीफोन..!
टपाल और तार के जमाने में
बन के फरिश्ता वो आया था
लोगो ने भी बड़े शौक़ से उसको आजमाया था।
आके उसने हर एक रिश्ता संवारा था
उस बूढ़ी मां के खतों का जवाब बनके आया था
उस मां को अपने बच्चे से उसने मिलाया था
जब बजती थी घंटी उसकी
मानो बेटा घर पर आया हो, और
आके उसने डोरबेल बजाया हो।
वो था तार से बंधा हुआ पर
उसने सबको आजाद किया था
दूर बैठे भी सबको एकसाथ किया था
पास होने का एहेसास दिया था।
आज जबसे टेलीफोन हुआ पराया है
स्मार्टफोन ने अपना राज जमाया है,
बरबादी का दौर हर ओर छाया है
हर रिश्ता हुआ पराया है
आज बंध गया हर इंसान है उस चार्जर की डोर से
मर गई है मानवता हर ओर से।
