STORYMIRROR

S Ram Verma

Others

3  

S Ram Verma

Others

तृप्ति !

तृप्ति !

1 min
173

तुम्हारी तृप्ति मेरी

अभिव्यक्ति में छुपी है

मेरी तृप्ति एक तुम्हारे

ही सानिध्य में छुपी है


तुम्हें तुम्हारी तृप्ति सुबह  

आँख खोलते ही मिल जाती है

मेरी तृप्ति रातों में करवट

बदल-बदल कर जगती है  


तुम्हें तुम्हारी तृप्ति मेरी

महसूसियत से मिलती है  

मेरी तृप्ति तुम्हारे पीछे-पीछे

दौड़ती भागती बैरंग लौट आती है  


तुम्हारी तृप्ति तुम्हारे चारों ओर

फैले शोर के नीचे दब जाती है   

मेरी तृप्ति तुम्हारी दहलीज़ पर

तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाती है


लेकिन मैंने तो कहीं पढ़ा है   

तृप्ति तो केवल तृप्ति होती है

फिर क्यों तुम्हारी तृप्ति और मेरी 

तृप्ति अलग अलग जान पड़ती है !


Rate this content
Log in