Sri Sri Mishra
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वो पाक़ नजर सा ठहरा
वो कुदरत का नज़ारा गहरा
फैली थी फ़िजा की खुमारियों की बांहों में
धरा की क्षितिज से झील की पनाहों में
हर पल पर भर रहा शोखियों से सतरंगी रंग
पहले प्यार की सुन रही प्रकृति झंकार की तरंग।
याद
जज्बात
दोस्ती
मेरे जज्बात
सरहद
यह प्यार है
मैं गुलाब