STORYMIRROR

तकता है

तकता है

1 min
866


लुटा शहर ऐसे अमन को तकता है

आंधियों मे चिराग़ जैसे लौ को तकता है


होश आये बेख़ुदी से तो मांगू दुआ

आसमां मेरा मुँह क्यों तकता है


जब वो राज़ी हुआ गिला भुला कर

बस कोई शिकवा मुँह को तकता है


वो गया था कसम ख़ुदा की खाकर

बे ईमान फिर भी गली को तकता है


ज़हर को उमर भर पीता रहा देखो

फिर भी मुँह ज़िन्दगी का तकता है


आवाज़ तो न थी उसके नाम की मगर

फिर भी ख़त के पते को तकता है


दिल मे हैं ग़ज़ल की तंग गलियां

दीवार पे तेरा नाम तकता है


मौसमों मुझको नाम दो बरसात

जो क़तरा ऐ वफ़ा को तकता है


दिन हैं शायद रुख़सती के क़रीब

आइना मुँह को तकता है


इश्क़ को गर मयस़सर नहीं वफ़ा

ग़म साक़ी को मैकदे मे तकता है


तेरी मेरी ख़िलाफ़तों मे रक़ीब

एक मासूम मुँह को तकता है


चलो जावेद मना लो, रात गुज़री

वो अब भी सहर को तकता है


Rate this content
Log in