तिरस्कार
तिरस्कार
मैं जानता हूं,
मेरे सच बोलने से
मैं अखरता हूं,
खटकता हूं
लोगों की नजरों में,
क्यों कि
सच कड़वा जो होता है।
कचोटता है
उनके जमीरों को
रौंद देता है
उनके अभिमान को,
पर उन्हें तो
झूठ की चासनी में
लद बद सफेद झूठ ही
बहुत पसंद आता है,
जो दिखाता तो है
अपना असर
धीरे धीरे ही सही,
मगर तब तक
आँखों में झूठ की
काली पट्टी,
उन्हें सब
काला ही दिखाती है
और मैं,
जिसे सच बोलने का
कीड़ा जो काटा है,
सच बोले बिना नहीं रह पाता,
ये जानते हुए भी
कि झूठों की जमात में
मुझे मिलेगा
तो सिर्फ और सिर्फ
तिरस्कार....।
