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Jyoti Agnihotri

Others

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Jyoti Agnihotri

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तबदील

तबदील

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पड़ी कुछ यूँ दरारें कि

रिश्ते दलीलों में और

घर मकानों में तब्दील हुए।


हृदय के भाव अब

भविष्य की संभावनाओं

में हैं तब्दील हुए।


भाव विभोर हृदय

न जाने कब संभावनाओं

की सोचने लगे।


दर थे घर जो कभी

मकान में तब्दील होने लगे।


दरार लिए खड़ा

वो टूट-सा मकान

न अब तेरा और न मेरा है।


घर बंटा-सा और

तेरा-मेरा वो हिस्सा

क्यों आज दोनों ही

से छंटा-सा है?


क्यों आज रिश्ता

हमारे लिए सजा सा है?

और जो है यही सच

तो फिर क्यूँ कुछ नया- सा

तेरी-मेरी पलकों पे सजा-सा है?


सजावट के इस खेल में

उस नन्ही सी जान का

जीवन भला बना

क्यों सजा-सा है?


घटते-घटते हम

कब इतने घट गए

अपने ही अंश से देखो

हैं कैसे छंट गए


देखो वो अबोध बाँह फैलाये

अब भी खड़ा-सा है।


पड़ी कुछ यूँ दरारें कि

रिश्ते दलीलों में और

घर मकानों में तब्दील हुए।



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