स्वतंत्रता
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता के लिए जो वीर लड़े थे
झांकते हैं जब आज धरती पर
होते हैं मायूस बहुत
देखकर हालात यह सारे
स्वतंत्र भारत का यह बिगड़ा रूप
भ्रष्टाचार बेरोजगारी
चारों तरफ है मारामारी
फैली नफरत की आग भारी
आंखों से अश्रु बहते हैं
अंतर्मन में प्रश्न उठते हैं
क्या इसके लिए लड़े थे हम ?
कहां गई ईमानदारी ?
खो गई क्यों जिम्मेवारी?
छल कपट लूट लपट का
खेल यह कैसा ?
स्वतंत्रता का नहीं मोल जरा सा
सही मजा स्वतंत्रता का तब है
जब जागरूक हो जनता सारी
ना हो बात सिर्फ अधिकार की
कर्तव्य निष्ठा हो सब पे भारी
चाहे आवाम, चाहे नेता वो हो
देशहित बस सर्वप्रिय हो
अमन शांति की हवा चली
हर कोई जय हिंद कहे