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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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सूखी डाल पर वसंत

सूखी डाल पर वसंत

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सहम उठती है तितली सी, 

किसी अन्जान स्पर्श की आहट से भी अतीत के गहरे ज़ख्मो का रहस्य छुपाते..!

एक निशान है उसकी रूह की सतह पर चरचर्राहट भोगती है पल-पल 

कसकर बांध रखा है खुद को अब एक दायरे में..!

वो आगे बढ़ता है उसके ज़ख्मो से निजात दिलाने 

वो डरता है कितनी मासूम है पिघल जाएगी छूने भर से..!

दर्द के काँटों के बीच बस ऊँगली से छूकर निकालते कली को

धीरे-धीरे यकीन की क्षितिज तक लाता है..!

ईश ने उसे प्यार करने के लिए बनाया है नोंच नोंच खाने के लिए नहीं, 

तड़पता है उगती कली को मुरझाया देखकर..!

आँखें बंद किए ही एक पवित्र भाव से आगोश में भरता है..!

अब वो पलकें उठाती है करीबी धूप का हाथ थामें,

एक परवाह भरा स्पर्श, दुलार भरा अपनापन महसूस होते ही

मुरझाई कली खिल उठती है 

उस खौफ़नाक हादसे के बवंडर से परे होती..!

मृत्यु शैया पर लेटी एक लाश में प्राण फ़ूँके एक फरिश्ते ने तो झिलमिलाते जी उठी।।

हल्की सी अपनेपन की पाक फुहार में नहाते

सूखी डार पर बसंत बैठा।। 



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