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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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सुमुखि सवैया

सुमुखि सवैया

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बिसारि दियो जबते बृज को हरि मंद समीर जलावति है ।

न शीत लगे तन कौ मन कौ यह शीत सदा भरमावति है ।

अधीर भयो, सिगरा बृज ब्याकुल, धीर न कोउ धरावति है ।

कि लौटि चलौ हरि गोकुल को सिगरी बृज भूमि बुलावति है ।।



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