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शशि कांत श्रीवास्तव

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शशि कांत श्रीवास्तव

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*सुबकती रही --वह*

*सुबकती रही --वह*

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आज फिर आया है

तारीख आठ मार्च का

इस दिन को मनाते हैं --हम

विश्व महिला दिवस के रूप में

और ...

करते हैं सम्मान--दिवस के उजाले में

पहनाकर हार और शॉल उनको --पर

रात के अंधेरे में करते हैं --उपयोग

हवस की ज्वाला को शान्त करने में

क्योंकि ,वह एक नारी थी --परन्तु

सुबकती रही --सिसकती रही वह

अंधेरे में ,जहां साथ छोड़ जाती है

परछाई भी ....

अपनी व्यथा को कहे किससे वह

जिसे मारा था --कोख़ में अपनी

क्योंकि वह एक -- स्त्री -- थी

बचाने को समाज में भेड़ियों से

सुबकती रही --सिसकती रही

खून के आंसू

क्योंकि ,वह एक नारी थी ....|



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