सुबह का भुला
सुबह का भुला
एक लाडला था दुलारा,
माता की आँखों का तारा,
माँ-बाप की बात न माने,
सबसे चतुर खुद को माने।
इसी तरह हो गया सयाना,
शादी हुयी आ गयी जनाना,
आया बुढापा माँ-बाप पर,
घर का बोझ चढा आ उस पर।
कुछ दिन तो वह रहा बेचैन,
छिन गया उसका सुख-चैन,
धन का कैसे करें कमाई ?
कोई बात समझ न आई।
पत्नि ने उसको समझाया,
पिता ने कुछ इल्म सिखाया,
धीरे धीरे हुआ सुधार,
करने लगा कमाई यार।
घर से हुआ दूर अभाग,
गुँजने लगा खुशी का राग,
कुछ पिता से करे सवाल,
कैसे सुधरा तेरा लाल ?
सुबह का भुला पुत्र हमारा,
बात मान अपने को सुधारा,
इल्म सीख कर की कमाई,
मेहनत व्यर्थ नहीं हो भाई !