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सरगोशियां

सरगोशियां

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घुंघरुओं सी झनकती,

बजती बारिशों में,

जब गुम हो जाते हैं,

सारे शोर शराबे,


और,

थिरकने लगते हैं जब,

हवाओं के भीगे बदन,

हल्के से चूम के मेरी गर्दन को,

कानों के नज़दीक,

बहुत नज़दीक,

गूंजती रहतीं हैं सरगोशियां तुम्हारी

आज भी।


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