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LALIT MOHAN DASH

Tragedy

4  

LALIT MOHAN DASH

Tragedy

सर उठाकर जीना चाहते हैं

सर उठाकर जीना चाहते हैं

1 min
349


बहुत मुश्किल हो रही है जिंदगी !

अब तेरे साथ चलना

हर पल मरना ,फिर जिंदा होना

फिर से मरना फिर जिंदा होना


ऐसा अहसास हो रहा है मेरे मीत !

सचमुच बहुत दर्द होता है

जब अपना आदर्श और 

अभिलाषा को मार कर 

जीना पड़ता है यहां गुलाम की जिंदगी


यहां जीना है तो हर हालात के साथ

समझौता करना पड़ता है

ऐसा है कि कोई गुनाह न करते हुए भी 

बार बार शीश झुका कर लोगों को

माफी मांगना पड़ता है

कभी कभी सबकुछ देख कर भी

अंधा बनने का अदा करना पड़ता है

बनना पड़ता है गूंगा और बहरा .....


ऐसे अदा करते करते आजकल हम

बहुत थक चुके हैं मेरे यार !

अब तो दिल बिलकुल चाहता नहीं है 

और अदा करने को ........


फिर ऐसे जिंदगी को चाहते नहीं हम

जिसे खुद के पास

अपनी साया के पास भी

बार बार शर्मिंदा होना पड़े


अब तो हम जितने दिन जिंदा रहे

सर उठा कर जीना चाहते हैं

चाहे जिंदगी छोटा हो 

कोई बात नहीं

पर हम अपनी जिंदगी के आंख में

खुद की आंख में भी

गर्व के साथ 

आंख मिला कर ,सर उठा कर जीना चाहते हैं



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