सोचा तुझे
सोचा तुझे
लिखने थे महज दो मिसरे, लेखनी हर्फ दर हर्फ चलती रही।
तेरा चेहरा नजरों में था, तेरी याद में गजल बनती रही।
लाख चाहा कि मैं बन मुक्तक खुद को लिखूँ
तेरे अहसास संग कविता पूरी तुझ पर बनती रही।
जब भी सोचा तुझे, मेरी कामरान मुझे मिलती रही।
जितना सोचा तुझे, तू मेरे और करीब होती रही।
ताउम्र तो क्या एक पल भी, तू नहीं रही पास मेरे।
मेरी सांसें तेरे होने के अहसास से सारा उम्र महकती रही।
मैं तन्हा था फिर भी, तू दूर कहीं साथ चलती रही।
दिल में थी राहतें तू कहीं तो है, जिंदगी बिंदास सरकती रही।
अजब आलम बेखुदी का, तू दूर होकर भी दूर न हुई कभी।
गुजरते वक्त संग जिंदगी, तेरी-मेरी कहानियां लिखती रही।
कदम डगमगाए जब मेरे ,संभाला दिल में तेरी मौजूदगी ने
तेरा वजूद भुलाया था मैंने, तू मुझ में रह मुझे सँवारती रही।
अपनी चाहतों के चलते ,न रखी कोई उम्मीद तूने मुझ से।
मैं उलझा रहा अपनों में, तू गैरों में रह उलझने मेरी सुलझाती रही।
