संतुष्ट हो जाये तो
संतुष्ट हो जाये तो
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जाने कितने प्यासे है लोग यहां
इनकी प्यास बुझती ही नही,
झरने के पानी से भी काम चल सकता है पर
इनकी प्यास समुद्र से भी बुझती नही...
जितना है उसमें गर सब संतुष्ट हो जाये तो
हर किसी के हिस्से में थोड़ी सी खुशियाँ आ सकती है,
पर हर किसी को चाहिए इतना ज्यादा कि
किसी अन्य के लिये कोई गुंजाइश ही नही बचती....
भाई भाई का दुश्मन हुआ बैठा है
अपने अपनो से ही नफरत करते है,
गैरो से कोई क्या उम्मीद क्या शिकवा करेगा
जब अपनो के हाथो में ख़ंजर है...