समय
समय


खामोशियां भी शोर मचा रही हैं हकीकत की,
और यादें गवाह है मेरी तबीयत की,
समंदर निचोड़कर जो, दो बूंदें आईं हैं मेरी आँखों में,
तेरे होने का इज़हार करती हैं, ये हमेशा... मेरी सांसों में,
निगाहें न जाने क्यों ये तेरी ओर खींची चलीं आती हैं,
सूरज डूबता है और शाम खींची चली आती है,
मैं अदा करता हूँ तेरी अदाओं का कर्ज़ हमेशा,
मैं आँखे मूंदता हूं और यादें खींची चली आती है ।
धड़कनों पर भी अब मेरा बस नहीं चलता है,
और तड़पा है दिल तबस्सुम का तोहफा लाने म
ें,
हर ज़र्रा तड़पता है, तेरी आगोश को पाने में,
क्यों तड़पती हैं रूह, तेरी महफ़िल सजाने में
इजहार ए शौक पूरा भी हो जाता,
मैं सरेआम तेरा भी हो जाता,
पर खींचते हैं कुछ वसूल मेरे भी मुझको,
नाम लेता है कोई तेरा और दिल मेरा धड़क जाता ।
लगाव इतना ही बढ़ गया है, तो क्या करें,
समय तेरा ही हो गया है, तो क्या करें,
आएगा वक्त मेरा भी मुझसे मिलने यकीनन,
फिर देखेंगे वक्त का वो अंजाम भी,
फिर कुछ बुरा भी होगा, तो कोई क्या करें?