स्मृति
स्मृति


चाँद छटा बिखेर रहा हर दम
सूर्य से मिल न पाता इक पल
मेरी तक़दीर में शायद तू नहीं
इसलिए मुझे शिकवा भी नहीं
तुम मेरे ख्यालों में आ जाओ
जीवन को रंगीन बना जाओ
तुम तो हो मेरे मन की धड़कन
मिले तो सज़दा करुँगा हरदम
सबसे आकर्षक होते यह पल
प्रिय मेरा हृदय बड़ा है विकल
तप्त मन को कैसे समझाऊँगा
तुम्हारे बिन चैन कैसे पाऊँगा
कभी तो आ जाओ बहार बन
मुझको मिलती नहीं तुम मगर
फिर से सपनों में आती अगर
अर्चना करूँगा प्रिये उमर भर
तुमसे कभी नयन न मिलाऊँगा
अनकही बातें तुम्हें न बताऊँगा
रखूँगा दबाकर हृदय के अंदर
तुमसे मैं जीवन भर छुपाऊँगा
तुम हो जाओ कान्हा से चंचल
मैं भी राधा जैसी बन जाऊँगी
संग-संग चलूँगी संग ही नाचूँगी
मैं इक दिन मीरा बन जाऊँगी
ज़हर प्याला बन सकता अमृत
इतना विश्वास है कान्हा तुम पर
होगी मेरी चिंता तुमको हे सखा
वारी-वारी जाऊँगी मैं भी तुम पर