समाज
समाज
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यहां नहीं किसी को कोई काज
फिर कैसा है ये समाज
कोई प्यार करे उसे रोको
बिना बात सबको टोको
किसी की खुशी आती नहीं रास
फिर भी रहते हैं सब पास
जात पात में बंटे है सब
जाने निकलेंगे इस से कब
प्यार कोई धर्म नहीं देखता
प्यार अपना मतलब नहीं सेकता
प्यार की अपनी भाषा है
सबसे करते आशा है
पर ये समाज ना समझ पाएगा
ये तो गीत पुराने गाएगा
रीति रिवाजों का बोल बाला है
प्यार को यहां किसने पाला है
पनपने दो इस प्यार को
रोको अपने वार को
ये आंगन में ख़ुशियाँ लाएगा
जात पात का भेद मिटाएगा