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श्वेत बादल

श्वेत बादल

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श्वेत रुई से बादल छाए

कैसे-कैसे रूप बनाए।


कभी पक्षी तो कभी शेर बन

मन को मेरे रहे लुभाए।


कौन है वो बस एक चित्रकार

मेरे आसमान को है सजाए।


प्रेमी बदरा, प्रियतम बदली

वो जब देखे तो शर्माए।


उड़ गई 'शिप्रा' बादल के संग

जगवालों को नज़र न आए।


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