श्राद्ध
श्राद्ध
मैंने देखा एक अजनबी
जो आया था अभी-अभी
श्राद्ध करने अपने पिता का विदेश से
फोन किया था कल उसने माँ को
"माँ” सारे प्रबन्ध करके रखना
क्या खिलाना पंडित को?
क्या देनी दक्षिणा?
ज्यादा कुछ समय नही मेरे पास
घर आया बेटा अपना काम निपटाया
जाने का समय हो आया
रो दी माँ बेचारी
बेटा बोला, माँ चिंता क्यूं करती हो
चाहिए जितना पैसा मनीआर्डर करवाऊंगा
देख-रेख के भी तेरे सारे प्रबंध करवाऊंगा
पर समय नही दे पाऊंगा
माँ बोली, बच्चे ‘पिता’
अंत समय तक करते रहे याद
सूख गई थी आँखे उनकी
पर तुम्हें देख न पाये थे
आओगे मेरे जाने के बाद क्या तुम?
करने मेरा श्राद्ध
जा बेटा मुक्त करूं तुम्हें
मत करना मेरा श्राद्ध
समय यूं मत करना आने-जाने में बर्बाद
बेटे की आँखो में आँसू आ रहे थे
बोला बेटा, माँ
मैं तुम्हें छोड़ अकेला नहीं जाऊंगा
मुझे माफ़ करना माँ
जीते जी तेरा कर्ज चुकाऊंगा
