शेफाली
शेफाली


सांध्य बेला
रंग रंगीन बिखेर
परिवेश सजा रही है
दिशा दिशा गुनगुन
गुनगुनाती लुभा रही है
मग्न करती हर बात है
सुगंंध शेफाली की
धीरे धीरे मदहोश
हो रही बढती आगे
पल पल यह रात है।।
वह निराली कोमल बलखाती
रात की रानी कहलाती है
खूब कृति यह मदमाती
गढने वाले ने गढ डाली है
हर का श्रृृंगार करने वाली
हरसिंगार खुद कहलाती है
कण कण हवा सुगंधित उससे
वह तो परिजात है
विचरती यहाँ वहाँ,इधर उधर
परियों को धरा पर
लुुभा बुलाती है।।
शिउली वह
श्रृृंगार प्रकृति का करती है
यह श्रृृंगार कर बावला
मृदंंग मन मन में बज जाता है
शेफाली के मद में मस्त
सिमटती सी रात में
चाँद तारे होकर मतवाले
गान उसी का गाते हैैं
तब तरंग तान लहराता है।।