सद्ज्ञान
सद्ज्ञान
खुशियाँ जो जीवन में पाना है,
अंतस भ्रमण तू कर ले प्यारे।
देख वहाँ बैठा हैं प्रियतम तेरा,
मिलन प्यारा तू कर ले प्यारे।।
देख विराजे वो यहाँ युगों से,
पल पल तुझे वो पुकार रहा।
प्रेम दीप अंतस में प्रज्वलित,
प्रेम तू कहाँ कहाँ खोज रहा।।
दे रहा वो हर पल प्रेरणा,
भटक बहक हम खो जाते।
चंद कागज के टुकड़े लेने,
विमुख अमर प्रेम से हो जाते।।
कर्तव्य पथ वो सिखाता,
ज्ञान दीप अंतस में जला।
श्रम, ज्ञान, प्रेम और करुणा,
यही तो है हम सबका जहाँ।।
विशुद्ध अंतस हो जहाँ जहाँ,
स्वयं प्रियतम पहुंचे वहाँ वहाँ।
एक पुकार जो भक्त की हो,
दौड़ आते वो सदा सर्वदा।।