सब बराबर ही तो है न
सब बराबर ही तो है न
पक्षियों का मधुर कलरव
सूर्य की किरणों की लालिमा
ऊंचे घने लम्बे वृक्षों की छाया
क्षितिज तक फैली हुई नीली चादर
और इन सब मनोरम दृश्य को
अपनी आँखों से कैद करना
एकदम ताजगी का अहसास
दे रहा था मन को
शहर की भागती-दौड़ती
जिंदगी से दूर आकर
प्रकृति के बीच
कितना सुकून देता है
और साथ में पूरा परिवार
हो तो "सोने पर सुहागा"
पतिदेव तो मशगूल है
खाना बनाने में
अपने दोस्तों के साथ
और हम सब पत्नियाँ
मजा ले रही है
इस खूबसूरत नजारे का
सभी बच्चे समुद्र की
लहरों से खेल कर
खुशी बना रहे है
तो वही दूसरी तरफ
कुछ बच्चे रेत से
न जाने कौन सा ताज़महल
बनाने में लगे है
उन्हीं के बीच मेरा नवीन
न जाने कब से क्या बनाने
की कोशिश में लगा है
दो पत्थरों को इकट्ठा करके
खैर बचपना सोच कर
मैं फिर से कुदरत के नजारे को
आँखों में समाने लगी
आँखों को बंद कर
हर चीज को महसूस
करना कितना अच्छा होता है न
मम्मी, जल्दी इधर आओ
नवीन की आवाज से मैं
अपनी दुनियाँ से निकली
और उसकी आवाज का
पीछा करते उस तक पहुंची
मम्मी देखो मैंने क्या बनाया है!
कहकर एक आकृति की तरफ
इशारा करने लगा
मैंने पास जा कर
उसका अवलोकन करना शुरू किया
अरे वाह ! नवीन
क्या सुन्दर बनाया है
मेरा इतना जवाब सुनते ही
वो खुशी से उछल पड़ा
पर बेटा इसमें एक कमी है
वो क्या मम्मी?
मैंने गंभीर मुद्रा में
आकृति का निरिक्षण किया
वो ये कि इस आकृति के
बाल तुमने छोटे बनाए है
इसके बड़े बनेंगे
तभी तो ये लड़की बनेगी
ये आकृति लड़का है
जो लड़की को अपना
दिल दे रहा है
दूसरी लड़की है
मगर मम्मी, तो क्या हुआ
अगर एक लड़का
दूसरी लड़की को
अपना दिल दे सकता है
तो एक लड़का
दूसरे लड़के को
अपना दिल क्यों
नही दे सकता
आखिर हम सब
बराबर ही तो है न
उसकी बेबाकी से
पहले तो मैं
अपनी जगह से ठिठकी
कि इस उम्र में
ये बात कहाँ से आई
इसके दिमाग़ में
फिर मैंने सोचा
कह तो सही रहा है
आखिर एक लड़का
अपना दिल
दूसरे लड़के को
क्यों नही दे सकता
सब बराबर ही तो है न
मैंने उसके बालों को
सहलाते हुए हामी भारी
और वो खुशी से उछलते हुए
मेरे गले लग गया
आखिर बच्चे भी कई बार
बातों-बातों में
नई बात सीखा देते है
और वो भी बड़ी...