सब भूल गए
सब भूल गए
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जितने सपने देखे सब भूल गए
जितने आँसू आए सब भूल गए।
तैरकर डूबते रहे इक समुंदर में
जितने ग़ोते लगाए सब भूल गए।
जब बाँध रखी थी आँखों पे पट्टी
जितने रंग दिखाए सब भूल गए।
छत पर रात वो चेहरा नहीं आया
हमने जितने तारे गिने सब भूल गए।
मतलब नहीं दास्तान ए दर्द बताने से
हमने जितने ग़म छुपाए सब भूल गए।
लफ्ज़ कड़वे आपके वो मीठे लगते थे
पत्थर जितने भी बरसाए सब भूल गए।
आपको दीदार ए यार करने की हसरत थी
जितने भी हाथ पैर फैलाए सब भूल गए।
