सावन
सावन
बौराए तरु हैं अमुवा के, मस्त बहारें छाई हैं।
इन्द्र धनुष के रंग बिखेरे ,सावन की रुत आयी है।
कोकिल कूक करे नित मोहक, चहक रही क्यारी क्यारी।
गंध बिखेरी है पुष्पों ने, सुध बिसराई है सारी।
मधुकर की मीठी गुंजन ने, अजब रागिनी गायी है।
बौराए तरु हैं अमुवा के, सावन की रुत आयी है।
अकुलाई सी शुष्क धरा पर, जब रिमझिम बूंदे आती।
अहा! सुहाना दृश्य देखकर, मन कलियाँ खिलती जाती।
निर्झर बहकर सरित मनोहर, सागर बीच समाई है।
बौराए तरु हैं अमुवा के, सावन की रुत आयी है।
झूले पड़ने लगे डाल पर, सखियाँ मोद करें सारी।
छन छन पायल बजे पाँव में, अखियाँ काजल से कारी।
अपलक रूप निहारे सजना, लाज नयन भर आयी है।
बौराए तरु हैं अमुवा के, सावन की रुत आयी है।
बम बम भोले ऊँचे स्वर से, काँवड़िये गाते जाते।
बिल्व पत्र से शिव पूजन कर, भक्ति भाव में खो जाते।
शिव शम्भू की छवि सुखकारी, नर नारी मन भायी है।
बौराए तरु हैं अमुवा के, सावन की रुत आयी है।