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J P Raghuwanshi

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J P Raghuwanshi

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"सावन गीत"‌

"सावन गीत"‌

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बागन में झूला डरे,

मनभावन सावन आयो रे।

वन में मोर पपीहा बोलें,

दादुर मधुर कंठ रस घोलें,

झर-झर झरना झरें।

मनभावन सावन आयो रे।।

बागन में झूला डरे,

मनभावन सावन आयो रे।।


हरी-हरी दूब लगे प्यारी-प्यारी,

घर-घर में रोपी हैं सवनें क्यारी,

हम सब के भाग्य जगे।

मनभावन सावन आयो रे।।

बागन में झूला डरे,

मनभावन सावन आयो रे।।


सखियां मिलजुल कजरी गावें,

भैया-बहन मिल सावन मनावें,

राखी के रंग है नयें।

मनभावन सावन आयो रे।।

बागन में झूला डरे, 

मनभावन सावन आयो रे।।


रिमझिम-रिमझिम मेघा बरषे,

काली घटा विच बिजली चमके,

नदी-नाले खूबै चढ़े।

मनभावन सावन आयो रे।।

बागन में झूला डरे,

मनभावन सावन आयो रे।।


घर-घर हो रहीं हैं रामायण,

आल्हा सुनवे में मनभावन,

देवालय सुन्दर सजे।

मनभावन सावन आयो रे।।

बागन में झूला डरे,

मनभावन सावन आयो रे।।


          


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