साथ
साथ
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हर हादसे का देगा गवाही नमी के साथ
चिपका हर एक लम्हा गुजरती सदी के साथ
क़ुर्बत बढ़ी है जब से तेरी और किसी के साथ
गहरा हुआ है रिश्ता मेरा शायरी के साथ
पूछा जो उसने हाल मेरा मुद्दतों के बाद
आंखें छलक पड़ीं थीं यकायक हंसी के साथ
आगोश में तो अपनी हमें ले चुकी थी मौत
रस्साकशी भी चलती रही ज़िन्दगी के साथ
इक दिन मशाल बन के वो लाएगा इंकलाब
दुबका हुआ जो शोर है खामुशी के साथ
बस इक ख़ता हमारी उन्हें सालती रही
अपना लिया है हमने जिन्हें हर कमी के साथ।
ऐसा नहीं कि दर मेरे आई नहीं खुशी
ग़म का भी दौर आया है हर इक खुशी के साथ।