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Chhabiram YADAV

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Chhabiram YADAV

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ऋतुराज का नव विहान

ऋतुराज का नव विहान

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शरद ऋतु का हो गया अवसान

ऋतुराज का हुआ नव विहान

देखो खेतों में सरसों लहराई

पीली चुनर ओढ़े धरा बलखाई

वृक्ष पर पंक्षी करते बसंत गान

ऋतुराज का हुआ नव विहान


सूरज की किरणें प्रखर है

ओलाव अब तो अंतिम है

गाँव घर में छाई ख़ुशियाँ

देखो आम्र में गुंजित है


पवन चले अब गीत सुनाती

मधुरिम होकर बहती जाती

मेरे तन से उठे अब लग्न है

कवि गढ़ता रोज गान

ऋतुराज का हुआ नव विहान



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