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अर्चना तिवारी

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अर्चना तिवारी

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रथयात्रा

रथयात्रा

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अषाढ़ महीना बीज तिथि को

गर्भ गृह से प्रभु की यात्रा निकलती 

आगे बहन सुभद्रा का रथ चलता

पीछे-पीछे भाई बलभद्र का रथ होता।

सबसे पीछे जगन्नाथ जी रथ में शोभा पाते 

रस्सों में बंधे रथ को श्रद्धा दे सब शीश झुकाते 

जो भी रथ खींचने का सौभाग्य पाते 

इस लोक का सुख भोग स्वर्ग को जाते।

शाम ढले रथ जो पहुँचे रथ पर प्रभु जन रात बिताते 

प्रातः पूजन अर्चना पश्चात प्रभु मौसी के घर को जाते 

गुंदीचा मंदिर पहुँच विश्राम सात दिवस हैं करते 

भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा संग शोभित होते। 

ऋषि मुनि जन की भीड़ -उमड़ -उमड़ आती 

दशमी तिथि को वापस रथ जाता 

जो बहुला यात्रा के नाम से है जाना जाता 

एक दिवस रथ पर ही प्रभु दर्शन देते।

पुनः तीनों प्रभु वापस अपने मंदिर आते हैं 

सुंदर स्वर्ण वेश में सजते प्रभु 

मोहक अलौकिक रूप देख जाऊँ बलिहारी 

अगले दिन से गर्भ गृह में शोभित होते।

प्रभु की महिमा सबसे निराली 

पुरी धाम में पर छा जाती खुशहाली 

कर दर्शन मनुज दुख कष्टों से मुक्ति है पाता 

पुरी धाम धरती का है बैकुंठ कहलाता।।



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