रसोई में तस्वीर
रसोई में तस्वीर
आओ एक ऐसी आलौकिक तस्वीर बनाऊं
सफेद चावलों से उज्जवल बादल
चाय की पत्तियों सी हरी हरी वादियां
गोल गोल रोटी सा चाँद बनाऊं
दूध जैसी चांदनी से नभ को सजाऊं
नमक से नमकीन करूँ समंदर का पानी
फिर एक नाव में नारी को बैठाऊं
लाल मिर्ची से भी तीखी हो
जब उसकी और कोई आँख उठाए
मिश्री की हो डली जब कोई प्रेम लुटाए
खट्टे कर दे खटाई की तरह उस के दाँत
जो उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाए
हल्दी से पीली पीली सरसों लहरा दूँ खेत में
दालों के बीजों को बोकर नवजीवन का
संचार करूँ
इलायची की महक बिखेर दूँ बाग ए
गुलशन में
चप्पू की तरह पकड़ा कर बेलन उस को
गरम मसाले जैसी गर्मजोशी से
जीवन समंदर पार कराऊं,
धैर्य और हौसले से साहिल तक पहुंचाऊं
अन्नपूर्णा ही नहीं है वह दुर्गा, काली, कादंबिनी है
मार्गदर्शक करके उसको,
यह परम सत्य का आभास कराऊं