रंग बदलती होली
रंग बदलती होली
कहाँ गया वो रंग अनोखा होली का,
कैसा है त्यौहार कुंकुम रौली का।।
मानवता की जलती होली, जलती हैं यहां शक्लें भोली।
जलता है प्रह्लाद बेचारा, हर सीने में लगती गोली।।
फैला है भय हिरणाकुश बलशाली का,
कहाँ गया वो रंग अनोखा होली का।।
धर्म अधर्म की बात कहाँ है, शैतानों का राज यहाँ है।
रोता भाई यहाँ किसी का, खोई बहिन की लाज कहाँ है??
होता है अपहरण यहाँ अब डोली का,
कहाँ गया वो रंग अनोखा होली का।।
बन गए अब पलाश अंगारे, दिखते हैं खूँ के फब्बारे।
होता है हर ओर धमाका, जलते हैं हर घर दर द्वारे।।
देता शब्द सुनाई अब बम गोली का,
कहाँ गया वो रंग अनोखा होली का।।
भ्रातु रक्त का भाई है प्यासा, शकुनि डालता है अब पाशा।
हर घर है कुरुक्षेत्र यहाँ अब, विजय जहाँ दुर्योधन पाता।।
चीरहरण होता है नित नव गौरी का,
कहाँ गया वो रंग अनोखा होली का।।
