प्रियतम के संग होली
प्रियतम के संग होली
होली में प्रियतम के संग,
जब खेलें हम फागुनी रंग।
महक उठे उसका अंगअंग,
देख देख शरमाती है, जब भी होली आती है।।
करके प्रियतम सौलह श्रृंगार,
अवलोक रही है बार बार।
बज गए हृदय वीणा के तार,
मानो बो मुझे बुलाती है, जब भी होली आती है।।
प्रियमुख पे मलता जब गुलाल,
हो जाते उसके नयन लाल।
वह उठती घूंघट पट सम्हाल,
अरु रहरहकर इतराती है, जब भी होली आती है।।
भर अंक प्रिय की छवि भोली,
कुछ शरमायी कुछ अनबोली।
छुईमुई सी कांपी अरु डोली,
मुझको मदहोश बनाती है, जब भी होली आती है।।
बीती बातों में सुखद रात,
बातों में कब हुआ नवप्रभात।
पुलकित दोनों के गात गात,
यूं ही मदमस्त बनाती है, जब भी होली आती है।।
सदा मृदुल व्यवहार करें,
अन्यायी से नहीं डरें।
आपस में हम प्यार करें,
ये ही होली सिखलाती है, जब भी होली आती है।।
