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श्याम मोहन नामदेव

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श्याम मोहन नामदेव

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फागुन

फागुन

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फागुन आया झूमते, ले बसंत को संग।

पोर पोर में मद भरो, प्रेम भरो हर अंग।।


अतिथि आगमन हेतु सब, स्वागत को तैयार।

टेसू ने टीका कियो, पहिनायो गल हार।।


खिले सभी के उर कुसुम, प्रेम पगे हर गात।

मंद मधुर मुस्कान मुख, विकसित दृग पुलकात।।


लता लजानी लाज से, लख लख श्री गोपाल।

मन मयूर नाचन लगे, हुए गुलाबी गाल।।


सलहज सरसों ने सजी, सारी श्याम शरीर।

होरी खेलन श्याम संग, मन में हुई अधीर।।


महुआ को मस्ती चढ़ी, मन मीठा हो जाए।

अंग अंग में भंग बसी, और खुमारी छाए।।


पिक पलास गेहूं चना, सरसों केशर आज।

सब मिल जुल कर खेलते, फागुन के संग फाग।।


केशर चंदन की महक, अरु पलाश को संग।

महुए की मस्ती चढ़ी, आज भंग के संग।।


सब मिल जुल कर के रचो, रंग महोत्सव आज।

भ्रमर  बजावे बांसुरी, कोयल छेड़े राग।।


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