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श्याम मोहन नामदेव

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श्याम मोहन नामदेव

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नारी व्यथा

नारी व्यथा

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तन ढांक न पाई, दीन दर्जी की नारी, 

गहनों को ललचाती रही, पत्नी सुनार की।

अपने बनाये महलों में न रह पाए राज़,

नंगे पांव चलती रही, पत्नी चमार की।।


लगाए न बालों में फूल, माली की मालिनी ने,

मिठाई न चख पाई,  नारी हलवाई की।

दूध को तरसती है,  देखो अहीर नारी,

पत्र की प्रतीक्षा में रही, पत्नी पत्रकार की।।


बिना बुलाए चली जाती है नाई नारी,

डोली में न बैठी, फिर पत्नी कहार की।

कासै कहूं? कैसे कहूं?, कोई सुनेगा नांय,

भूखी ही सोती रही पत्नी किसान की।।


Note - यहां प्रयुक्त शब्द जातिसूचक नहीं हैं, बल्कि कर्म आधारित हैं।


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