नारी व्यथा
नारी व्यथा
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तन ढांक न पाई, दीन दर्जी की नारी,
गहनों को ललचाती रही, पत्नी सुनार की।
अपने बनाये महलों में न रह पाए राज़,
नंगे पांव चलती रही, पत्नी चमार की।।
लगाए न बालों में फूल, माली की मालिनी ने,
मिठाई न चख पाई, नारी हलवाई की।
दूध को तरसती है, देखो अहीर नारी,
पत्र की प्रतीक्षा में रही, पत्नी पत्रकार की।।
बिना बुलाए चली जाती है नाई नारी,
डोली में न बैठी, फिर पत्नी कहार की।
कासै कहूं? कैसे कहूं?, कोई सुनेगा नांय,
भूखी ही सोती रही पत्नी किसान की।।
Note - यहां प्रयुक्त शब्द जातिसूचक नहीं हैं, बल्कि कर्म आधारित हैं।
