रजनी,,,दोहे
रजनी,,,दोहे
रोती रजनी राह में, प्राची देखे भोर ।
अब अस्तित्व न रह सके,जीवन जहां हिलोर ।।
एक बात का दुख मुझे, डूबे तारे मोर ।
मेरे आंचल से उन्हें,चुरा लिया है चोर ।।
चंदा भी व्याकुल फिरे, मेरे पथ को देख ।
मेरी भी अस्तित्व नहीं,लगा रही मैं लेख ।।
गम् साधो साधू बनों, रवि का भी है अंत ।
मेरे तारे चंद तुम, दीन्हे सीख सुमंत ।।
आंगन से मैं जा छिपी, मूढ़ों के मन जान ।
रवि के जाते छा रही, तारों का ले सान ।।
देती मैं आराम जग, सुंदर स्वप्नों संग ।
खाती सदा थकान को, शक्ति भरूं मैं अंग ।।
रवि की कीमत है तभी, चमके लाल गुलाल।
पल के सह इस गगन में, जब तक मेरा पाल ।।
कली खिलाती डाल में, जग को देती फूल ।
भरती फूल पराग मैं, जो जीवन का मूल ।।
तपे हुए नभ पवन को, देती शीतल भान ।
वनचर को निर्भय करूं, गा लें वो भी गान ।।
कहने को मुझको कहें, रजनी तू संसार ।
अनंतानंत आंचल में,रवि तारों का प्यार ।।
