रिश्तों का क़ायदा
रिश्तों का क़ायदा
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उम्र भर का वायदा है
इश्क़ की यह इब्तेदा है
मुश्क़िलों का कौन साथी
सब की राहें तो ज़ुदा है
पूछते किससे पता हम
हर बाशिंदा गुमशुदा है
दिल मिले अब ना किसी से
सबकी फ़ितरत अलहदा है
ठोकरें खाकर ये जाना
थामता बस इक ख़ुदा है
मुस्कुराहट कौन देता
सारी दुनिया ग़मज़दा है
कैसे रुकता वो मुसाफ़िर
जिसका जाना तयशुदा है
हैं मरासिम चार दिन के
सबकी मंज़िल अलविदा है
जेब जब फटती है गिरते
रिश्तों का यह क़ायदा है
