STORYMIRROR

Ravi Purohit

Others

4  

Ravi Purohit

Others

रधिया

रधिया

2 mins
460

मर-मर कर

जीने का

उपक्रम करती है रधिया,

तगारी के संबल से

आठ जनों की भूख को

आश्वस्त करती है वह !


बल पड़ती रीढ की मालकिन

शर्म-शाइस्तगी से

सजाती रहती है

गिट्टियां

तरल कोलतार में

मरणासन्न रधिया

तन्मयता से !


संवेदनाएं

मर चुकी है सड़क की

पर कोलतार की भूख नहीं मिटी !


लाचारगी

पसरी रहती है आस-पास,

भूखहा अंधियारा

गहराता रहता है

आंखों के आगे...


गिरा देना चाहता है

जड़-प्रायः रधिया को

पर मैले-कुचेले

नंग-धडंग बच्चे

दारूखोर पति के हाथों

पिटते और भूख से त्रस्त हो

रिरियाते

तैर जाते हैं

चुंधियाते कोर्णिया में


थाम लेते हैं कलई,

‘परिवार-कल्याण’ का मुद्दा

लगा देता है उसे

दुगूने उत्साह से

तगारी उठाने में


ठेकेदार

ताकता रहता है टुकुर-टुकुर

ठण्डे जिस्म की

मैली पिण्डुलियों को

और सेकता रहता है

अपने कामी मन को

इस बुझी आग से !


रधिया

अनजान बनी लगी रहती है

धियाड़ी पकाने में,

प्रतिरोध का हश्र

मजूरी से हटना ही होगा,

जानती है भली-भांति


इसीलिए

मजदूरी के वक्त

औरत नहीं

सिर्फ मजदूरन होती है

जमाने की रधिया !!


Rate this content
Log in