राम तुम्हारा वन्दन है
राम तुम्हारा वन्दन है
चारु चन्द्र की चारु चांदनी चमक रही सुन्दर मुख पे
स्वर्ण रंग की स्वर्ण रागिनी दमक रही लक्ष्मी सुख पे
भाल नील है कृष्ण भौंह हैं और श्वेत शुभ चन्दन है
पीत वर्ण का धरे वसन जो दाशरथी का वन्दन है।।
मोक्ष जहां है नाक जहां है नर्क जहां सत दर्पण है
कीर्ति जहां है रीति जहां है जहां वित्त सब अर्पण है
धर्म जहां है कर्म जहां है और जहां पे जीवन है
तंत्र जहां हैं मंत्र जहां है उस पद का हिय वन्दन है।।
पाद सजा जो पद्म राग से वक्ष अष्टश्री शोभित है
ओष्ठ दामनी सजी जहां है करे जगत नित मोहित है
पद्म नेत्र की पुण्य पंखुड़ी हिले मनोहर नर्तन है
भूल सदा जाता चख रस को उन्हीं राम का वन्दन है।।
शून्य खड़ा अभिलाष नहीं ,कुछ नही हमारा उलहन है
प्रेम भरा सुख दुख जो देंगे वही हमारा शुभ धन है
पुण्य सदा जिनके चरणों में करता सदा समर्पन है
उन्ही राम के पावन पग में कालि शिष्य का वन्दन है।।