राहगीर
राहगीर
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एक स्पर्श
मुलायम मखमली
तहें बेशुमार
आनंद असीम
थके कदम
राहगीर को मोहे
महक सौंधी
जैसे चंपा चमेली
बैठा सकुचाता वो
उँगलियों से खेलता
नन्हे कण अनगिनत
जैसे ब्रह्माण्ड का प्रतिबिम्ब
गीली सी खुशबू
मिट्टी जो है काली
मेघों के तोहफे
बने मीलों की हरियाली
स्वर्ग का एहसास उसे
वृक्षों के झुरमुट तले
बारिश के आगमन में
शिखिर को लगातार ताके
यात्रा जैसे सफल
राहगीर तृप्त
अब बंद हैं आँखें
आनंद को क़ैद किये
मुख पे मुस्कान लिए