प्यार और अधिकार
प्यार और अधिकार
'तुम दिन को अगर रात कहोगे हम रात कहेंगे....
'तुम मुझे अक्सर यह गाना सुनाया करते थे
और इस गाने पर हम अक्सर मुस्कुराया करते थे....
मेरे साथ तुम 'बाँहों में तेरे मस्ती के डेरे' गाना गुनगुनाया करते थे....
उस वक़्त तुम कहा करते थे, 'तुम जो कहोगी वह मैं हाज़िर करूंगा...'
'मुझे रंग बेहद पसंद है' मैंने एक दिन यूँ ही कह दिया था...
तुम मेरे लिए तरह तरह के शेड की लिपस्टिक्स ले आये
मुझे यकीन हुआ 'सजी धजी औरतें हर मर्द को भाती है...'
बारिश के दिनों में एक बार मैंने यूँ ही कह दिया था.....
'आसमाँ की काली घटाएँ बेहद खूबसूरत दिखती है.....!!'
अगले ही दिन तुम मेरे लिए ढेर सी काजल और आइलाइनर ले आये...
मुझे यकीन हुआ कि मर्दों को गहरी काली ऑंखों वाली औरतें भाती है...
यूँ ही एक बार मैंने पुराने किले के झरोखों की तारीफ की थी
तुमने घर की दीवारों में जहाँ तहाँ खूबसूरत झरोखे बनवा लिये
मुझे यकीन हुआ कि औरतों की हिफाज़त करना मर्दों को भाता है....
कभी मैंने फूलों की खुशबू के बारे में कुछ कहा था.....
अगले ही दिन तुम तरह तरह की ढेर सी परफ्यूम ले आये....
महकती साँसों में महकना किस मर्द को नहीं भाता है?
आज न जाने क्यों वह सारी पुरानी बाते मुझे याद आ रही है.....
आहिस्ता आहिस्ता तुमने प्यार से ज्यादा अधिकार जताना शुरू किया है.....
धीरे धीरे हिफ़ाज़त के नाम पर तुम अब मेरी आज़ादी भी छीन रहे हो...
