पुत्री वियोग
पुत्री वियोग
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बिटिया पराया धन है, फिर क्यों रोता बाप।
ये चुभते जज्बात हैं, नहीं समझते आप।।
पत्थर रख कलेजे पर, गैर कर दी जान।
आज बस याद भरी है, जो थी कल तक शान।।
कहे तो गला भर आता, मन में रखे अल्फ़ाज़।
बाप का साथ यहीं तक, तू कर नव आगाज़।।
नई दहलीज पहुंच कर, हो तेरा सत्कार।
सबकी खुशी तू बनना, जो पाए संस्कार।।
